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Friday, October 24, 2008

शैतान और नपुंसक सरकार


क्या महाराष्ट्र की सरकार नपुंसक है ?
शैतान को उसी की भाषा में जबाब चाहिए .

Sunday, August 31, 2008

भाषा निरपेक्षता


राजनीति का एक मिजाज ये भी है .सिर्फ़ चार ही क्यो भाई ,भारतीय संविधान में तो २२ भाषा का जिक्र है ,तो सभी भाषा की लिपि में लिखा बोर्ड होना चाहिए क्योकी दिल्ली में तो सभी भाषा और प्रांत के लोग रहते है और एक बात तो भूल गए ही गए हमारी दिल्ली में तो ८ फीसदी लोग अनपढ़ भी है तो उनके लिए भी तो कोई इंतजाम होना चाहिए . तभी तो राज्य या सरकार भाषा निरपेक्ष कही जाएगी .

Monday, August 18, 2008

“जिन्दगी क्या है जानने के लिए जिन्दा रहना बहुत जरुरी है”

साँप के मुहँ मे फसा मेडक अपने आस पास उड्ती मख्यियो को निगलना चाहता है,
ऎसा ही हमारा जीवन है जो पत्थर कि मुर्ति कुछ खा नही सकती, उस पर मेवे और फल डाले जाते है, और भुखी आत्मा को “मार – मार” कह भगा दिया जाता है .
पिछली 3 तारीख को मेरे दादाजी(1927-2008) का स्वर्गवास हुआ, शमशान घाट पर जब मुखाग्नि देने का समय हुआ तब अग्नि अर्पित करने वाले महाश्य धन की जिद करने लगे,कहने लगे 5001 रु लुगा तभी अग्नि दुँगा, लोक परम्परा के मुताबिक शमशान घाट का रखवाला ही अग्नि देता है. बहरहाल काफी सौदेबाजी के बाद बात 501 पर तय हुई, बाकी के पैसे तेरहवी के दिन लेने की शर्त पर महाश्य ने अग्नि दी.

Friday, August 8, 2008

मद्धिम होते गांधी

15 अग्स्त नज्दीक आ रहा है, अखबारो मे विभिन्न सन्स्थाओ की उपस्थिति दर्ज होगी साथ मे महात्मा गान्धी (बापु) की चर्खा पर सुत काटते एक तस्वीर भी होगी, Happy Independence Day.. का एक बडा स्लोगन होगा. गान्धी वादी समाजवाद से दुर दुर तक रिशता न रखने वाले गान्धी के आदर्श पर चलने (छ्लने) की बात करते है. शायद यह इसलिए की आज भी लोगो को लगता है कि बापु की तश्वीर लगाने से ही सही होने का सर्टिफिकेट मिल जाता है(मायावतीजी से माफी चाहता हुं).

आज कल टीवी पर एक और बापु(आसारामजी बापु) बहुत ही धुम मचा रहे है, इनके आश्रम के चर्चे टीवी/अखबारो की सुर्खियां बटोर रहे है .मानव बली,सेक्स,रासलीला, गर्भवती लडकिया तमाम बाते निकल कर सामने आ रही है. "बापु "शब्द अपनी निर्मलता ,गरिमा खोता जा रहा है.इन आडम्बरी बाबाओ ने "बापु "शब्द को मलीन कर दिया है.

Friday, July 25, 2008

अतीत और वर्तमान








जब से होश सम्भाला है राम का नाम सुनता आया हुँ,सबसे पहले दादा /दादी/नाना/नानी से सुनता था(इनमे से कुछ लोग राम के ही पास है),फिर
धारावाहिक “रामायण “ मे राम को देखा और सुना.उसी दौरान पापाजी ने रामायण का एक संछिप्त संस्करण खरीद कर दिया था, मेरे द्वारा पुरी पढी गई पहली पुस्तक थी ,रामायण.
बाद मे राम और रामायण को विवाद और उन्माद का प्रतीक बनते देखा.सियासती हुक्मरानो ने राम का ऎसा बिभ्स्त रुप दिखाया की राम एक बस्तु(commodity) बन कर रह गये. राम मन्दिर, शिलान्यास,शिलादान,रामलला,रामसेतु आज श्रधा, सम्मान, गरिमा खो चुके है और इनका नाम विवाद का synonyms बन गया है.राम और रामायण ने जो आदर्श और परम्परा स्थापित की उस बात का जिक्र कभी सुनने को नही मिलता है. दशहरा के दिन होने वाली रामलीला ही आज जन मानस मे
राम और रामायण का अवलोकन कराती है.
अभी हाल मे ही एक प्रतिष्ठित मिडिया ग्रुप ने अपना मनोरंजन चैनल लांच किया
और रामायण को एक नए कलेवर मे पेश कर दर्शको को पेश किया जा रहा है. रामायन देखने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रनिक मिडिया मे प्रचार किया जा रहा है.क्या इस महाकाव्य(EPIC SAGA) को पढ्ने और देखने के लिए किसी प्रचार कि जरुरत है? क्या राम और रामायण बाजार बन गए है.आज लोगो को रामायण :एक अच्छी आदत की तरह बताया जा रहा है.शायद कलयुग मे राम का नाम भी बिना मार्केटिंग के नही चलने वाला है.एकता कपुर रामायण को मात दे रही है ,राम के आदर्श तो पहले ही कुचले जा चुके है.
शायद मेरे दिल मे आज भी राम मौजुद है और इस महाकाव्य को दिल के बहुत करीब पाता हुँ, तभी तो आज भी इस काव्य को पढ्ने और देखने का मन करता है पर अपने घर मे भी राम को entry कम ही मिलती है,एकता कपुर ने राम का राम नाम सत्य कर दिया है.

Thursday, July 24, 2008



लोकतंत्र ?
मंगलवार को संसद मे जो भी कुछ हुआ,इसके बाद हरिशंकर परशाई कि कहानी “भेडे और भेडिए” की याद आ गई. स्कुल मे इस कहानी को पढ्ते समय इस कहानी का पुरा अर्थ समझ मे नही आता था.नए पाठ्य क्रम मे इस कहानी को शामिल किया गया थाऔर गगनदेव सिंह जो हमारे हिन्दी के टीचर थे इस कहानी को बडे ही चाव से पडाया करते थे.आज इस कहानी का मर्म पुरी तरह समझ मे आ रहा है.”नोट के बदले वोट ‘ आज तक केवल जनता के बीच चुनाव के समय सुनाई देता है परंतु ये खेल तो एक टेस्ट मैच (TEST MATCH) की तरह पांचो साल चल रहा है, हाँ vote of confidence
के समय T-20का मैच भी हो जाता है।


क्या गाँन्धीजी ने ऎसे लोकतंत्र की कल्पना की थी ?

Monday, July 21, 2008

दिल्ली के राज ठाकरे

दिल्ली के ठाकरे

मुखर्जी नगर मे एक दुकान पर बैठा था, पास ही कुछ युवक बाते कर रहे थे,आशियाना खरिदने कि बाते हो रही थी.पहला युवक ने कहा- “यार गान्धी विहार मे सस्ते फ्लैट मिल जायेगे’,दुसरा युवक बोला- “चल भाग,गान्धी विहार मे बिहारी रहते है,कही और बता”.

फर्क

पति के जन्मदिन पर पत्नी उन्हें तोहफा देती थी। वहीं पति भी पत्नी के जन्मदिन पर उसे तोहफा दिया करते थे। पत्नी गृहिणी थी। जाहिर था कि वह पति से ही पैसे लेकर अपनी पसंद के तोहफे उन्हें देती थी। तोहफे देते वक्त उसके मुंह से अनायास निकलता, लीजिए, मेरी तरफ से तोहफा!
पति सोचते, पत्नी मेरे ही पैसे से मुझे मेरे जन्मदिन पर तोहफे देती है तो उसे अपना क्यों बता देती है। एक बार पति के जन्मदिन पर पत्नी ने एक शर्ट पति को प्रेजेंट की और कहा, मेरी ओर से इसे कबूल कीजिए।
पति ने कहा, मैं तुम्हें तोहफा दूं या तुम मुझे तोहफा दो, बात तो एक ही है क्योंकि दोनों तोहफों में पैसा मेरा ही लगता है। फिर दोनों में फर्क क्या है?
पत्नी को बहुत बुरा लगा। वह पति के मन में छुपे भाव को ताड गई। उसने संयम दिखाते हुए कहा, तुम्हारे और मेरे तोहफे में स्वामित्व के लिहाज से कोई फर्क नहीं है।
मगर इस लिहाज से फर्क जरूर है कि जहां तुम्हारे तोहफे में पुरुषजन्य दर्प झलकता है वहीं मेरे तोहफे में प्रेम और विनम्रता होती है। ऐसा बेबाक जवाब सुनकर पति महोदय सकपका गए।
पति और पत्नी मे येदहि फर्क है.
 

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