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Thursday, July 24, 2008



लोकतंत्र ?
मंगलवार को संसद मे जो भी कुछ हुआ,इसके बाद हरिशंकर परशाई कि कहानी “भेडे और भेडिए” की याद आ गई. स्कुल मे इस कहानी को पढ्ते समय इस कहानी का पुरा अर्थ समझ मे नही आता था.नए पाठ्य क्रम मे इस कहानी को शामिल किया गया थाऔर गगनदेव सिंह जो हमारे हिन्दी के टीचर थे इस कहानी को बडे ही चाव से पडाया करते थे.आज इस कहानी का मर्म पुरी तरह समझ मे आ रहा है.”नोट के बदले वोट ‘ आज तक केवल जनता के बीच चुनाव के समय सुनाई देता है परंतु ये खेल तो एक टेस्ट मैच (TEST MATCH) की तरह पांचो साल चल रहा है, हाँ vote of confidence
के समय T-20का मैच भी हो जाता है।


क्या गाँन्धीजी ने ऎसे लोकतंत्र की कल्पना की थी ?

 

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