साँप के मुहँ मे फसा मेडक अपने आस पास उड्ती मख्यियो को निगलना चाहता है,
ऎसा ही हमारा जीवन है जो पत्थर कि मुर्ति कुछ खा नही सकती, उस पर मेवे और फल डाले जाते है, और भुखी आत्मा को “मार – मार” कह भगा दिया जाता है .
पिछली 3 तारीख को मेरे दादाजी(1927-2008) का स्वर्गवास हुआ, शमशान घाट पर जब मुखाग्नि देने का समय हुआ तब अग्नि अर्पित करने वाले महाश्य धन की जिद करने लगे,कहने लगे 5001 रु लुगा तभी अग्नि दुँगा, लोक परम्परा के मुताबिक शमशान घाट का रखवाला ही अग्नि देता है. बहरहाल काफी सौदेबाजी के बाद बात 501 पर तय हुई, बाकी के पैसे तेरहवी के दिन लेने की शर्त पर महाश्य ने अग्नि दी.
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4 days ago
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