कल का मैच इंडिया हारा नहीं बल्कि धोनी ने हरवाया . लगता है धोनी जिस भाग्य के घोड़े पर सवार होकर चल रहे थे वो घोड़ा अब थक सा गया है . आखिर भाग्य कितना साथ देगा .कल के मैच में दुबारा दो पार्ट टाइम स्पिनर के साथ उतरना , धोनी की कप्तानी क्षमता पर बहुत बड़ा सवाल उठाता है . जिस स्पिनर ने पिछले मैच में लगातार छ्ह छक्के खाए हो उसी पार्ट टाइम स्पिनर को दुबारा खिलाना धोनी की बेवकूफी को बयान करता है .कैप्टन कुल(Cool) पुरे भारत को फुल (Fool) बना रहा है .
दरअसल धोनी की एक दिक्कत है वो कभी भी अपने से सीनियर या अपने समकक्ष के खिलाड़ी से दूर भागते है . वो सचिन तेंदुलकर , सहवाग , नेहरा , हरभजन , युवराज को टीम में नहीं चाहते है जबकि ये खिलाड़ी मैच विनर है . धोनी की पसंद हमेशा दोयम दर्जे के खिलाड़ी रहे है जैसे की ,रविंदर जडेजा , आर पी सिंह , पठान बन्धु, जो हमेशा धोनी के पिछलग्गू बने रहे . इस उलट गांगुली जब कप्तान थे , उन्होंने क्वालिटी प्लेयर को आगे लाया और उन्हें हमेशा सम्मान दिया जैसे की तेंदुलकर, द्रविड़ , लक्ष्मण , युवराज सिंह, सहवाग, हरभजन आदि . सहवाग जब भारतीय टीम में आये तब वो ओपनर नहीं थे , गांगुली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और अपनी जगह उन्हें दे दी ( उस समय गांगुली ओपनर थे पर सहवाग के लिए उन्होंने तीन नंबर पर बल्लेबाजी की ). ये था गांगुली का त्याग टीम के लिए . वैसे ही एक समय जब राहुल द्रविड़ वन डे टीम में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे , गांगुली ने उन्हें विकेटकीपर बनाकर उन्हें वन डे टीम में जगह पक्की करा दी , रिजल्ट सबके सामने था , राहुल द्रविड़ ने वन डे में दस हजार रन बनाए . राहुल द्रविड़ क्रिकेट इतिहास की तीन सबसे बड़ी साझेदारी में सभी में साझेदार रहे है . भारत की और से सबसे तेज अर्ध शतक बनाने वाले बल्लेबाज है राहुल द्रविड़ . गांगुली ने हर खिलाड़ी को उसके प्रतिभा के हिसाब से न्याय किया और उसे सही सम्मान दिया . जबकि धोनी एक ख़ास गुट को ही आगे लाते है और दुर्भाग्य से वो गुट मैच जिताने वाला नहीं बल्कि मैच हरवाने वाला है . गांगुली ने जब टीम छोडी , राहुल द्रविड़ कैप्टेन बने उन्होंने भी गांगुली की विरासत को आगे बढाया . जब राहुल द्रविड़ ने स्वेच्छा से कप्तानी छोडी और धोनी को कप्तानी उपहार स्वरुप मिली , धोनी के पास करने के लिए कुछ भी नहीं था , एक जितने वाली टीम तैयार खडी थी, धोनी को कुछ नहीं करना था , बस टॉस करने के अलावा धोनी को कुछ ख़ास म्हणत नहीं करनी थे क्योकि जो खिलाड़ी उस समय टीम में थे उनको कुछ सिखाने पढ़ाने की जरुरत नहीं थी , वो खिलाड़ी लड़ना जानते थे ,और जीतना उनके खून में समा चुका था .
पर अब समय बदल चुका है , उनमे से खुछ खिलाड़ी टीम से बाहर है और कुछ जो है उनमे जोश भरने वाला कोई नहीं है वो झुके हुवे से दिखाई देते है . युवराज सिंह की ही बात करे , ये खिलाड़ी जो फील्ड में चीते की तरह कुलांचे भरता था , वो खिलाड़ी कही खो सा गया है , वो युवराज दिखाई ही नहीं देता जिसने लोर्ड्स में अकेले नेट वेस्ट ट्राफी जीता दी थी . सहवाग कभी चोट से बाहर रहते है तो कभी अन्दर . टीम में होते है भी तो boundary line के आस पास फील्डिंग करते हुवे नजर आते है , वो भी बुझे बुझे से.
धोनी को २००७ में जो टीम मिली थी , उस टीम का सत्यानाश कर दिया धोनी ने .वही रोहित शर्मा जो गिलक्रिस्ट की कप्तानी में डेकन की टीम की जान होते है , भारतीय टीम में आते ही फुस्स हो जाते है , वही हाल रैना , मुरली विजय ,गंभीर का भी होता है . मोटीवेशन के बिना खिलाड़ी लड़ना भूल गए है , धोनी की कप्तानी ने खिलाड़ियों को पंगु बना दिया है. गांगुली और राहुल द्रविड़ ने जिस विरासत को धोनी को सौपा था वह मटियामेट हो चुका है , जब धोनी की कप्तानी जायेगी ( निकट भविष्य में प्रबल है ) , उस समय वो एक बहुत ही कमजोर टीम छोड़कर जायेंगे , वैसी टीम जो अन्दर से टूटी हुई होगी और जितना भूल चुकी होगी
2 comments:
आपका विश्लेषण आपकी क्रिकेट की गहरी समझ बताता है। कई मुद्दों पर आपका मौलिक नज़रिया आखें खोलने वाला है।
बहुत सही विश्लेषण दिया है...अभी तो भारतीय टीम बहुत लुटी - पिटी सी नज़र आती है.....
सच तो ये है की अब हार और जीत दिमाग पर हावी नहीं हो पाती
मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया .
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