जब से होश सम्भाला है राम का नाम सुनता आया हुँ,सबसे पहले दादा /दादी/नाना/नानी से सुनता था(इनमे से कुछ लोग राम के ही पास है),फिर
धारावाहिक “रामायण “ मे राम को देखा और सुना.उसी दौरान पापाजी ने रामायण का एक संछिप्त संस्करण खरीद कर दिया था, मेरे द्वारा पुरी पढी गई पहली पुस्तक थी ,रामायण.
बाद मे राम और रामायण को विवाद और उन्माद का प्रतीक बनते देखा.सियासती हुक्मरानो ने राम का ऎसा बिभ्स्त रुप दिखाया की राम एक बस्तु(commodity) बन कर रह गये. राम मन्दिर, शिलान्यास,शिलादान,रामलला,रामसेतु आज श्रधा, सम्मान, गरिमा खो चुके है और इनका नाम विवाद का synonyms बन गया है.राम और रामायण ने जो आदर्श और परम्परा स्थापित की उस बात का जिक्र कभी सुनने को नही मिलता है. दशहरा के दिन होने वाली रामलीला ही आज जन मानस मे
राम और रामायण का अवलोकन कराती है.
अभी हाल मे ही एक प्रतिष्ठित मिडिया ग्रुप ने अपना मनोरंजन चैनल लांच किया
और रामायण को एक नए कलेवर मे पेश कर दर्शको को पेश किया जा रहा है. रामायन देखने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रनिक मिडिया मे प्रचार किया जा रहा है.क्या इस महाकाव्य(EPIC SAGA) को पढ्ने और देखने के लिए किसी प्रचार कि जरुरत है? क्या राम और रामायण बाजार बन गए है.आज लोगो को रामायण :एक अच्छी आदत की तरह बताया जा रहा है.शायद कलयुग मे राम का नाम भी बिना मार्केटिंग के नही चलने वाला है.एकता कपुर रामायण को मात दे रही है ,राम के आदर्श तो पहले ही कुचले जा चुके है.
शायद मेरे दिल मे आज भी राम मौजुद है और इस महाकाव्य को दिल के बहुत करीब पाता हुँ, तभी तो आज भी इस काव्य को पढ्ने और देखने का मन करता है पर अपने घर मे भी राम को entry कम ही मिलती है,एकता कपुर ने राम का राम नाम सत्य कर दिया है.