करीब सात साल से यमुना के किनारे से होकर रिंग रोड से अपने ऑफिस जाता हूँ . कभी कभी ही ( केवल बरसात के कुछ दिन ) अहसास होता है की एक पुराणिक नदी के किनारे किनारे जा रहा हूँ . इन दिनों भी यही अहसास हो रहा है , यमुना वाकई नदी बन गयी है , उफान लेती हुई नदी , बलखाती हुई नदी , अभिमानी नदी , स्वाभीमानी नदी. आज कल यमुना को देख एक नदी का एहसास होता है.
(सबसे नीचे को छोड़कर सारी तसवीरें बस अड्डा , चंदगी राम अखाड़े से ली हुई है )