जुगाड़ क्रिकेट / आई पी एल
आज कल आई पी एल का बुखार देस पर छाया हुआ है है. आई पी एल "हर कीमत " , जैसे एक टी  वी न्यूज चैनेल पर टैग  लाइन  आता है "खबर हर कीमत पर ", वैसे ही ललित मोदी ने कहा "आई पी एल हर कीमत पर". केंद्र सरकार, गृह मंत्री  से लड़ बैठे , निजी सुरक्षा एजेंसियों के बल पर भारत में आई पी एल  करने का प्रस्ताव भेज डाला. धर्मशाला  में मैच करने की बात कही गयी , फिर भी सरकार नहीं मानी तो आई पी एल को भारत से बाहर ले गए.
कुल मिलाकर क्रिकेट होना चाहिए चाहे कितना भी जुगाड़  करना पड़े . आखिरकार क्रिकेट राष्ट्रधर्म जो बन चूका है, प्रीटी जिंटा के  तो यहाँ तक कह दिया  " thanx god  हर साल  election  नहीं होता ". मुझे याद आती है उस दौर की १९९० जब हम गलीयो में जुगाड़ क्रिकेट खेलते थे. उस क्रिकेट  में विकेटकीपर , स्लीप  का कोई स्थान नहीं होता था. विकेट किसी दीवाल पर तीन लाईने खींच कर बना दी जाती थी. कभी कभी तो सड़क के फर्श पर ही तीन लाईने खींच कर विकेट बना दी जाती थी . L.B.W का कोइ प्रावधान नहीं होता था. साफ़   रन आउट होने पर कोइ आउट होने को तैयार नहीं होता था. टीम में शामिल हर प्लेयर को बैटिंग और बालिंग दोनों जरुर मिलना चाहिए वर्ना कैप्टेन की शामत आ जाती थी. बालिंग में हरेक बालर फास्ट बालिंग ही  करता था. स्पिनर की तो कोई इज्जत ही नहीं थी. T-२० को आज की खोज कहा जा रहा है हम  तो उस दौर में ही  T-5, T-10,T-१५ खेलते थे. कभी दोनों बैट्समैन   के पास बैट  नहीं होता था . Non - striker end वाला  बैट्समैन बिना बैट के ही  खेलता  था और हरेक बाल के बीच में बैट्समैन बैट बदलते  थे. उस दौर  में शायद पुरी   टीम  मिलकर  दो बैट नहीं खरीद  पाते  थे .
 कहा  जाता  है के क्रिकेट  अमीरों  का खेल है.  क्रिकेट में बहुत सारा   accesories होता  है और गरीब  ईस खेल को नहीं खेल सकते है. ईस  समस्या  का हल भी निकाल  लिया या यू  कहे  बाज़ार  ने  काफी मदद  की. दरअसल  क्रिकेट  की ड्यूज बाल काफी    कठोर  होती  थी और बिना  पेड  / ग्लब्स   / सुरक्षा  साधनों  के बिना  उस  बाल से खेलना   काफी मुश्किल  होने लगा. शायद भारतीय  प्लास्टिक कम्पनियों  को यह बात समझ में आ  गई  और आगमन  हुआ प्लास्टिक  बाल का , आकार  में थोड़ी  छोटी  प्लास्टिक बाल काफी कठोर थी और उछाल ड्यूज बाल जैसी ही थी खेलने  में ज्यादा चोट लगने की संभावना नहीं थी. बाद में यह बाल भी कुछ ज्यादा नहीं जची ,बाज़ार एक बार फिर आगे आया और पेस की कॉस्को  बाल/ टेनिस बाल.प्लास्टिक बाल के बाद कोसको बाल/ टेनिस बाल का  ही  चलन हुआ , यहाँ  बाजार ने एक नई क्रांति ला दी . टेनिस बाल , क्रिकेट के काम आने लगी .
क्रिकेट और वालीवुड ने  भारत के एकीकरण में सरदार पटेल से भी ज्यादा  योगदान दिया है . युवराज के छक्को को देखकर मुस्लमान भी उतना ही खुस / रोमांचीत होता है जितना एक हिन्दू , युसूफ  पठान के छक्को का आनंद हर भारतीय लेता है. आई पी एल  तो इससे भी एक कदम आगे  है, यहाँ तो मेलबोर्न से मुंबई तक ट्रेन चलती है, पाकिस्तान की रजिया सहवाग के लिए रोजा रखती है , संगकारा के लिए सारा पंजाब पिंड माँगता है , शेन वॉर्न के लिए पूरा राजस्थान "हल्ला बोळ" गाता है. मखाया एंटीनी "गाता रहे मेरा दिल " गाना गाते है. पंजाब  के हरभजन सिंह जब केरला के श्रीसंत को थप्पड़ मारते है तो मोहाली के मैदान पर उनकी हुटिंग  होती है . मैथ्यू हेडेन मुरलीधरन को कैच लेने पर  खुशी  में गले से लगा लेते है . ललित मोदी साउथ अफ्रीका में मैदान में औटोग्राफ देते नजर आते है . ये सब कुछ बस यही होता है ! बस आई पी एल के दर पर. काश ऐसी बाते शायद हर क्षेत्र में होती .
आई पी एल "हर कीमत पर" कराने की यह जिद  तारीफ़ के काबिल है, यही आलम रहा तो शायद नोबेल प्राईज सेलेक्सन कमीटी को अगली साल के नोबेल  प्राईज (Peace) के लिए नोमिनेशन में   आई पी एल  का नाम भी  प्रस्तावित  होना चाहिए. आई पी एल  का एक नाम और  होना चाहिए International Peace league.
आमीन !s