ये तस्वीर हरिद्वार के शांति कुञ्ज की है . माधव का मुंडन कराने जब मै हरिद्वार गया था , ये तब की तस्वीर है ."भटका हुआ देवता"के नीचे कई आईने रखे हुवे है . इस आईने में खुद को देखना है और अपने अंदर के देवता को ढूढना है और भटकाव को महसूस करना है . मनुष्य देवत्व के बहुत करीब हो़ता है, हमें शायद अपने अंदर झांकने की जरुरत है .
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Monday, August 30, 2010
बलखाती यमुना
करीब सात साल से यमुना के किनारे से होकर रिंग रोड से अपने ऑफिस जाता हूँ . कभी कभी ही ( केवल बरसात के कुछ दिन ) अहसास होता है की एक पुराणिक नदी के किनारे किनारे जा रहा हूँ . इन दिनों भी यही अहसास हो रहा है , यमुना वाकई नदी बन गयी है , उफान लेती हुई नदी , बलखाती हुई नदी , अभिमानी नदी , स्वाभीमानी नदी. आज कल यमुना को देख एक नदी का एहसास होता है.
(सबसे नीचे को छोड़कर सारी तसवीरें बस अड्डा , चंदगी राम अखाड़े से ली हुई है )
Monday, June 28, 2010
तो कैसी आयेंगी अगली सानिया ?
ऊपर की तस्वीर अहमदाबाद के हेल्थ क्लब की है . मुस्लिम लडकियां बुर्के पहन कर अभ्यास कर रही है , क्या बुर्का यहाँ भी जरुरी है ?
और अगर ये सही है तो अगली सानिया क्या आ पाएंगी !
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